16 सित॰ 2009

एक आग तो बाकी है अभी

प्रतिभा कटियार

इस महत्वपूर्ण आन्दोलन के कई सुखद पहलू हैं. एक तो यही कि पत्रकारिता का पहला पाठ ये छात्र खुद ही लिख भी रहे हैं और पढ़ भी रहे हैं. ऐसे आन्दोलनों ने हमेशा इस विश्वास को जिलाए रखा है कि दौर कितना भी मुश्किल हो, काफी कुछ है जिसे बचाया जाना चाहिए. देश के कई हिस्से में लोगों को आन्दोलित भी कर रहा है ये आन्दोलन.
सबको बधाई!


एक आग तो बाकी है अभी
उसकी आंखों में जलन थी
हाथों में कोई पत्थर नहीं था।
सीने में हलचल थी लेकिन
कोई बैनर उसने नहीं बनाया
सिद्धांतों के बीचपलने-बढऩे के बावजूद
नहीं तैयार किया कोई मैनिफेस्टो।
दिल में था गुबार कि
धज्जियां उड़ा दे
समाज की बुराइयों की ,
तोड़ दे अव्य्वास्थों के चक्रव्यूह
तोड़ दे सारे बांध मजबूरियों के
गढ़ ही दे नई इबारत
कि जिंदगी हंसने लगे
कि अन्याय सहने वालों को नहीं
करने वालों को लगे डर
प्रतिभाओं को न देनी पड़ें
पुर्नपरीक्षाएं जाहिलों के सम्मुख
कि आसमान जरा साफ ही हो ले
या बरस ही ले जी भर के
कुछ हो तो कि सब ठीक हो जाए
या तो आ जाए तूफान कोई
या थम ही जाए सीने का तूफान
लेकिन नहीं हो रहा कुछ भी
बस कंप्यूटर पर टाइप हो रहा है
एक बायोडाटा
तैयार हो रही है फेहरिस्त
उन कामों को गिनाने की
जिनसे कई गुना बेहतर वो कर सकता है।
सारे आंदोलनों, विरोधों औरसिद्धान्तों को
लग गया पूर्ण विराम
जब हाथ में आया
एक अदद अप्वाइंटमेंट लेटर....

(कविता प्रतिभा की दुनिया से साभार)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें