कुलपति,
डीन कला संकाय,
डीन विद्यार्थी कल्याण,
अध्यक्ष, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग,
विश्वविद्यालय के सभी अध्यापक गण एवं छात्र
यूजीसी के नियमों को ताक पर रखते हुए विश्वविद्यालय द्वारा पिछले 25 वर्षों से चल रहे पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के होते हुए भी, ‘मीडिया अध्ययन केन्द्र’ के रूप में एक नये व्यावसायिक संस्थान की स्थापना की जा रही है। इस व्यावसायिक संस्थान में स्ववित्तपोशित पाठ्यक्रम के रूप में बी।ए. (मीडिया अध्ययन) एवं कुछ अन्य सर्टिफिकेट व डिप्लोमा कोर्सेज प्रारम्भ किये जा रहे हैं। दरअसल यह ‘मीडिया अध्ययन केन्द्र’ फोटो जर्नलिज्म एण्ड विजुअल कम्युनिकेषन केन्द्र का ही नया मुखौटा है, जो अब तक एकवर्शीय स्ववित्तपोशित पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कोर्स संचालित करता था । लेकिन आज पत्रकारिता विभाग को उपेक्षित कर समानान्तर कोर्स चलाने की कवायद चालू हो गयी है। यूजीसी द्वारा मान्य एम.ए. पत्रकारिता एवं जनसंचार पाठ्यक्रम संचालित करने वाले विभाग को छोड़कर उसके कार्य क्षेत्र में ही एक ही विश्वविद्यालय के अंदर बी.ए. मीडिया अध्ययन ;ठण्।ण् डमकपं ैजनकपमे द्ध के लिए दूसरे संस्थान एवं स्ववित्तपोशित पाठ्यक्रम की व्यवस्था समझ से परे है। इस सन्दर्भ में हम, विभाग के विद्यार्थी, कुलपति व विश्वविद्यालय प्रषासन से कुछ प्रष्न पूछना चाहते हैं और कुछ बिन्दुओं की ओर आपका ध्यान इंगित कराना चाहते हैं। 1. जब विश्वविद्यालय के अन्दर पहले से ही पत्रकारिता एवं जनसंचार का एक विभाग मौजूद है, जो एम.ए. कोर्स करा रहा है तो फिर बी.ए. मीडिया अध्ययन के रूप में विभाग के समानान्तर एक व्यावसायिक कोर्स किसी दूसरे केन्द्र या संस्थान में चलाने का क्या औचित्य है?2. ऐसे किसी पाठ्यक्रम का औचित्य तब और भी अधिक नहीं रह जाता, जब बी.ए. मीडिया अध्ययन का पाठ्यक्रम और बी.ए. पत्रकारिता एवं जनसंचार का पाठ्यक्रम यूजीसी द्वारा तय किये गये पाठ्यक्रम के समान है।3. क्या विश्वविद्यालय की प्रषाासनिक नीति नये षैक्षिक पाठ्यक्रमों की “ाुरूआत को लेकर इस बात से सहमत है कि ‘इंस्टीट्यूट आॅफ प्रोफेषनल स्टडीज’ किसी विभाग के समानान्तर बी.ए.@एम.ए। जैसे स्ववित्तपोशित कोर्स चला सकता है? यदि भविस्य में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग अपना भी एक कोर्स “ाुरू करना चाहता है तो विश्वविद्यालय का क्या जवाब होगा? क्या विश्वविद्यालय एक ही पाठ्यक्रम की दो अलग अलग डिग्रियां बांटने की इजाजत देगा? इस बारे में विभागों के लिए क्या दिषानिर्देष हैं?4। विभागों के समानान्तर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की ‘ाुरूआत से सम्बन्धित केन्द्रीय विश्वविद्यालय के क्या नियम हैं?5। क्या कोई केन्द्रीय विश्वविद्यालय ग्रेजुएषन, पोस्ट ग्रेजुएषन या डिप्लोमा पाठ्यक्रमों की “ाुरूआत विश्वविद्यालय नियमों के अन्तर्गत बिना स्थायी षिक्षकों की नियुक्ति के कर सकता है?6. हम विश्वविद्यालय के कुलपति से यह जानना चाहते हैं कि “ौक्षिक स्तर को ऊपर उठाने के जिस लक्ष्य की वो बात करते हैं, बिना स्थायी षिक्षकों के पाठ्यक्रमों की “ुरूआत करके वे इस दिषा में किस परिपाटी का निर्माण करना चाह रहे हैं?7. क्या कारण है कि विश्वविद्यालय प्रषासन द्वारा नियुक्तियों, कोश एवं अनुदानों के बंटवारे के सिलसिले में लगातार विभाग की अवहेलना की जाती है, मसलन* विभाग पिछले 20 सालों से सिर्फ एक स्थायी षिक्षक के द्वारा चलाया जा रहा है।* योजनागत एवं गैर योजनागत नियुक्तियों का कोई आवंटन क्यों नहीं हुआ? * यूजीसी की ग्यारहवीं योजना समिति के सामने विभाग को प्रस्तुति की अनुमति क्यों नहीं दी गई जबकि सभी नियम कायदों को दरकिनार करते हुए यूजीसी टीम को फोटो जर्नलिज्म विभाग का दौरा कराया गया?* जहां कुछ चुनिन्दा विभागों नियुक्ति हेतु चयन समिति का गठन होता है, वहीं पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग एवं इस जैसे अन्य विभागों की अनदेखी की जाती है?* जब विश्वविद्यालय विभाग की मूलभूत आवष्यकताओं जैसे कोश एवं शिक्षक इत्यादि की पूर्ति करने में पिछले पांच वर्शों से असफल रहा है, तब एक नये समानान्तर पाठ्यक्रम की “ाुरूआत के पीछे आखिर क्या तर्क हैं? आखिर ऐसी कौन सी नीतिगत मजबूरियां हैं जो कुलपति का कार्यकाल खत्म होने के ठीक पहले ही और कार्यकारिणी समिति द्वारा औपचारिक रूप से इस निर्णय की संस्तुति से पूर्व ही प्रेसविज्ञप्ति देने एवं इस पाठ्यक्रम की प्रवेष प्रक्रिया “ाुरू करने हेतु बाध्य करती है?9. आखिर क्यों इंस्टीट्यूट आॅफ प्रोफेषनल स्टडीज को इतनी तत्परता से पत्रकारिता के डिग्री पाठ्यक्रम की आवष्यकता है? पत्रकारिता के क्षेत्र में “ौक्षणिक गुणवत्ता की वृहत् परिकल्पना में ये निर्णय क्या प्रयोजन सिद्ध करता है?10. “ौक्षिक समुदाय की जानकारी के लिए हम विनम्रतापूर्वक ये बताना चाहते हैं कि मीडिया अध्ययन मीडिया के समालोचनात्मक अध्ययन का क्षेत्र है, न कि मीडिया पेशेवरों के निर्माण का। जबकि उक्त पाठ्यक्रम मात्र मीडिया पेशेवरों के निर्माण के सम्बन्ध में ही बात करता है।11. क्या हमारी आशका सही नहीं है कि आने वाले समय में कोश, संसाधनों एवं नियुक्तियों के मामलों में हमारा हक भी इस तथाकथित इंस्टीट्यूट आॅफ प्रोफेषनल स्टडीज के हाथों हड़पा जायेगा, जबकि इसके निदेषक की कुलपति कार्यालय से घनिश्ठता सर्वविदित है।
अन्ततः हम माननीय कुलपति महोदय से अनुरोध करना चाहेंगे कि वे देश के विभिन्न केन्द्रीय विश्वविद्यालय से वरिष्ट मीडिया शिक्षाविदों की एक समिति का गठन करें जो कि इस मामले का गुणों के आधार पर निस्तारण करने में सक्षम हो। इससे कम कुछ भी विभाग एवं इसके विद्यार्थियों के विकास को अवरूद्ध करने का प्रयास माना जायेगा क्योंकि “ौक्षणिक परिषद् एवं कार्यकारिणी परिषद् दोनों में ही इस विषय से सम्बन्धित विषेशज्ञों का सर्वथा अभाव है।
समस्त विद्यार्थी
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
(कृपया फॉण्ट परिवर्तन सम्बन्धी त्रुटियों को नज़रंदाज करें)
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