4 सितम्बर,09
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पत्रकारिता एवं जन संचार विभाग के रहते उसके समानांतर स्ववित्तपोषित पत्रकारिता विभाग चलाने और शिक्षा के व्यवसायीकरण करने के खिलाफ आज भी विश्वविद्यालय का माहौल गरम रहा। एक बजे तक कक्षाएं लेने के बाद पत्रकारिता विभाग के सैकड़ो छात्रों ने काली पट्टी बाधे अपने प्राध्यापक सुनील उमराव के नेतृत्व में कला संकाय में मौन जुलूस निकाला और विभिन्न विभागों की दीवारों पर अपने ज्ञापन को चस्पा किया। बाद में अपने विभागाध्यक्ष और कला संकाय के डीन एनआर फारूकी से पत्रकारिता विभाग की उपेक्षा और विश्वविद्यालय में नये पत्रकारिता कोर्स के नाम पर हो रहे निजीकरण पर स्पष्टीकरण मांगा। छात्रों ने कला संकाय के सभी विभागों में जाकर छात्र-छात्राओं एंव प्राध्यापकों से अपने पत्रकारिता विभाग को बचाने और निजीकरण विरोधी अपने आन्दोलन के समर्थन में आने की गुजारिश की। विभाग के छात्रों ने सवाल उठाया कि विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के समानान्तर जो पत्रकारिता की दुकान खोली जा रही ह,ै आखिर उसमें कौन लोग पढ़ेंगें। जो डिग्री छात्रों को कुछ हजार रूपयों में मिल रही थी उसके लिए लाखों रूपये विश्वविद्यालय क्यों वसूलेगा। जबकि केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद विश्वविद्यालय के पास अधिक संसाधन हो गये हैं और वो छात्रों को ज्यादा सुविधा मुहैया करा सकता है। पर विश्वविद्यालय आम छात्रों को विश्वविद्यालय पहुुचने से वंचित करना चाहता है। इस सिलसिले में छात्र अपने विभागाध्यक्ष और कला संकाय के डीन प्रो एनआर फारूकी से मिले और एकेडमिक काउंसिल की उस मीटिंग, जिसमें स्ववित्तपोषित पत्रकारिता विभाग चलाने की बात की गयी थी, पर स्पष्टीकरण मांगा। घेराव के दौरान प्रो फारूकी बीच बचाव करते हुए निजीकरण के पक्ष में उतरे जिसका छात्रों ने कड़ा विरोध किया और सवाल किया कि जो विभागाध्यक्ष कभी विभाग नहीं आते हैं वो हमारे भविष्य का निर्धारण कैसे कर सकते हैं।
पत्रकारिता विभाग के छात्रों ने निर्णय लिया है कि जब तक विश्वविद्यालय पत्रकारिता की नई दुकान बीए इन मीडिया स्टडीज को बंद नहीं करता तबतक हमारा आंदोलन जारी रहेगा। कल शिक्षक दिवस के अवसर पर छात्र विभिन्न संकायांे में जाकर पत्रकारिता विभाग बचाने और विश्वविद्यालय में हो रहे निजीकरण विरोधी अपने आंदोलन के लिए अध्यापकों से समर्थन मांगेंगें और पर्चा बाटेंगे।
5सितम्बर,09
विश्वविद्यालय में पत्रकारिता एवं जन संचार विभाग के समानांतर स्ववित्तपोषित पत्रकारिता कोर्स चलये जाने के खिलाफ पत्रकारिता विभाग के छात्रों का आन्दोलन आज तीसरे दिन भी जारी रहा। शिक्षक दिवस के अवसर पर छात्रों ने आज कला संकाय और विज्ञान संकाय के अध्यापकों से विश्वविद्यालय में हो रहे व्यवसायीकरण एवं पत्रकारिता विभाग के समानान्तर स्ववित्तपोषित स्नातक कोर्स चलाए जाने के खिलाफ अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की। जिस पर लगभग दो दर्जन से अधिक शिक्षकों ने समनान्तर कोर्स चलाए जाने के विरोध में अपना समर्थन दिया। पत्रकारिता विभाग के सैकड़ो छात्रों ने आज अपनी कक्षा से छूटते ही प्लेकार्ड, काला झण्डा और हाथों में काली पट्टी बाधे एवं गुलाब का फूल लिए कला संकाय और विज्ञान संकाय के सभी शिक्षकों से मिले और उन्हें शिक्षक दिवस की बधाई दी। प्लेकार्डस पर ‘पत्रकारिता विभाग के समानान्तर स्ववित्तपोषित कोर्स क्यांे कुलपति जवाब दो तथा पत्रकारिता की निजी दुकान बन्द करो’ इत्यादि नारे लिखे थे। इस दौरान छात्रों ने अपनी 11 सूत्री मांगों का पर्चा भी वितरित किया। साथ ही छात्र विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के अध्यापकों से मिले और अपने विभाग के समानान्तर स्ववित्तपोषित मीडिया की दुकान पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की। जिस पर 22 शिक्षकों ने अपनी राय खुल कर रखी और आन्दोलन के पक्ष में हस्ताक्षर किया। और लगभग सैकड़ो शिक्षकों ने अप्रत्यक्ष रूप से आन्दोलन का समर्थन किया।इस दौरान छात्र कला संकाय के डीन प्रो एनआर फारूकी से भी मिले और उन्हें शिक्षक दिवस के दिन अपने प्राध्यापक को अपनी जायज मांगो को उठानेे के लिए नोटिस देने पर धन्यवाद देते हुए गुलाब का फूल दिया। छात्रों ने व्यंग कसते हुए उनसे अपनी लड़ाई में सफल होने का आशीर्वाद मांगा। जिस पर उन्होंने इस लड़ाई में ही नहीं जीवन की हर लड़ाई में सफल होने का आशीर्वाद दिया। छात्रों का कहना है कि आखिर विश्वविद्यालय में जब सरकार द्वारा अकूत धन दिया जा रहा है, जिसमें से हर साल एक बड़ा हिस्सा वापस लौट जा रहा है तो ऐसे में व्यक्तिगत हितों के लिए सेल्फ फाइनेंस कोर्स आखिर क्यों चलाया जा रहे है। छात्रों का यह भी कहना था कि प्त्रकारिता की जो डिग्री विश्वविद्यालय दो साल में 14 हजार में दे रहा है उसके समानान्तर प्रस्तावित स्ववित्तपोषित कोर्स यही डिग्री सवा लाख रूपये में देगा। जिसे सिर्फ उच्च वर्ग के पैसे वाले लोग ही खरीद सकते हैं। इस दौरान छात्रों ने बु़द्धजीवियों सेे भी अपील की कि वे निजीदुकान मंे व्याख्यान देने जाने से बचे क्योंकि इससे निजी दुकानें चलाने वालों को वैधता हासिल होती है। छात्रों ने बताया कि आंदोलन सिर्फ एक विभाग को बचाने के लिए ही नहीं बल्कि प्त्रकारिता की जनपक्ष़्ाधर स्वरुप को बचाने के लिए है जो अपनी मांगों के पूरा होने तक चलता रहेगा। इस पूरे मुद्दे पर छात्र अजय ने सूचना अधिकार कानून के तहत तीन सवालों का जवाब भी मांगा है। जिसमें तुलनात्मक साहित्य विभाग के बंद किये जाने का कारण, पिछले 25 साल से पत्रकारिता विभाग में फैकेल्टी नियुक्ति के लिए यूजीसी मानकों के अनुसार किये गये पहल तथा ऐसे विभागों की जानकारी मांगी गयी है जिसमे यूजीसी के मानकोें को क्रियान्वित किये बिना ही शिक्षण कार्य चल रहा है।
6सितम्बर,09
पत्रकारिता विभाग के सैकडो़ं छात्रों ने पत्रकारिता विभाग की उपेक्षा और यूजीसी के मानदंडों के विपरीत विश्वविद्यालय में ही शुरु किये जा रहे सेल्फफायनेंस मीडिया अध्ययन के विरोध में डेलीगेसी और हास्टलों में हस्ताक्षर अभियान चलाया। पत्रकारिता विभाग के छात्रों के आंदोलन में शरीक शिक्षक सुनील उमराव को शिक्षक दिवस के दिन नोटिस जारी करने को अलोकतांत्रिक व तानाशाही पूर्ण कदम बताया।पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के छात्रों की अपने विभाग की उपेक्षा और विश्वविद्यालय में एक विभाग के समानान्तर दूसरी जगह अवैध रुप से चलाये जाने वाले पत्रकारिता कोर्स के विरोध में ंशुरु आंदोलन आज चैथे दिन भी जारी रहा। छात्रों ने कुलपति के मीडिया में दिये बयान कि पत्रकारिता विभाग के द्वारा जारी मुहिम छात्रों को भड़काने के साजिश है और इस कार्य के लिए विभाग के अध्यापक को दण्ड दिया जायेगा का विरोध किया। इस पर छात्रों ने कहा की कुलपति अगर किसी पर्चा लीक जैसी धांधली को छिपाने के लिए मार्च करते हैं तो वे उसे वे गलत नही मानते और छात्रों की जायज और तर्कसंगत मांग करने पर नोटिस जारी करते हैं। छात्रों ने इसे छात्र आंदोलन विरोधी विश्वविद्यालय का तानाशाही पूर्ण कदम बताया।सैकडों की संख्या में छात्र कटरा डेलीगेसी, जीएन झा हास्टल, पीसीबी और सर सुंदरलाल छात्रावास के छात्रों को इस अभियान से जोडा। हजारों की संख्या में छात्रों ने हस्ताक्षर कर सर्मथन जताते हुए कहा की केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद अकूत धन आने के बावजूद भी अगर विश्वविद्यालय फर्जी दुकान खोलने से बाज नही आता तो सड़को पर उतरेगें। आंदोलन से जुडते हुए डेलीगेसी के छात्रों ने कहा कि आंदोलन सिर्फ एक विभाग को बचाने के लिए नही बल्कि पत्रकारिता के जनपक्षधर स्वरुप को बचाने के लिए है।छात्रों ने मांग की कुलपति नोटिस देने के बजाय स्पष्टीकरण दे की बगैर एक्जीक्यूटिव काउंसिल से पास हुए कोर्स में प्रवेश कैसे शुरु किया जा रहा है। जबकि पत्रकारिता विभाग के ही एमए कोर्स को एक्जीक्यूटिव कमेटी से पास न होने के चलते विभाग दो साल 2005 से 2007 तक बंद रखा गया। छात्रों ने सवाल किया कि जिस एकेडमिक काउंसिल से कार्स को एपू्रव होने की बात कह रहे है उसमें बीए मीडिया स्टडी कोर्स का प्रस्ताव रखने वाले व्यक्ति की विश्वविद्यालय में क्या अथारिटी है।छात्रों ने यूजीसी को विश्वविद्यालय का काला लेखा-जोखा भेजते हुए कहा की मांगे पूरी न होने तक आंदोलन चलता रहेगा।
13 सित॰ 2009
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