बहुत दिन बाद कुछ जिन्दा रहने की खबर मिली। बाज़ार में बिकते शिक्षा को बचाने की जो मुहिम इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों ने चलायी है। उससे देश में आम नागरिक के शिक्षा पर अधिकार की नयी आशा जागी है। अगर समय रहते ऐसे आन्दोलन नहीं किये गए तो देश के अमीरजादे गरीब लोंगो को देश की मुख्य धारा में आने का सपना तोड़ देंगे। पिछले दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के समांतर एक स्ववित्तपोषित पत्रकारिता कोर्स खोलने का विरोध बड़ी तेजी से आगे गति पकड़ रहा है. यह विरोध न सिर्फ एक कोर्स को बचाने का है बल्कि पत्रकारिता में उस परंपरा को जीवित रखने का भी है जो व्यवस्था के खिलाफ की पत्रकारिता रही है. बाज़ार ने शिक्षा के साथ मीडिया को पंगु और अमीरों के हाथ की कठपुतली बनाने का जो खेल रचा है उसके प्रति ये विरोध शुरुआत हो सकती है लेकिन ये आने वाले दिनों के लिए एक बड़े जन आन्दोलन की पृष्ठभूमि साबित होगी। हमें लोकतंत्र बचाना है तो शिक्षा और पत्रकारिता दोनों को बाजारीकरण से बजाना होगा. तभी देश का आखिरी आदमी भी देश के सबसे बड़े पद पर जाने का अपना सपना पूरा कर सकता है. पत्रकारिता ने देश के आजादी की लडाई लड़ी तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने देश को छात्र आन्दोलन के जरिये नयी राजनीतिक दिशा दी. अब पत्रकारिता का छात्र राजनीती के गढ़ के साथ फिर मेल हुआ. सच मानिये वक्त भले लगे, मगर शिक्षा के इस बाजारीकरण की मृत्यु तय है.
( विनय जायसवाल आईआईएमसी, नई दिल्ली के पुरा छात्र और सजग पत्रकार है.)
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