14 सित॰ 2009

शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ धरना, जुलूस और प्रदर्शन शुरू

- पढ़ाई के साथ इलाहाबाद विवि के छात्रों की लड़ाई

अंबरीश कुमार

इलाहाबाद, 7 सितम्बर। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में लंबे अंतराल के बाद पढ़ाई के साथ लड़ाई शुरू हो गई है। पिछले चार दिन से शिक्षा के निजीकरण के सवाल पर पत्रकारिता के छात्र और शिक्षक सड़क पर उतर रहे हैं। यह लड़ाई अब और व्यापक होने ज रही है। कल परिसर में बुद्धि-शुद्धि यज्ञ होने ज रहा है जिसमें आजदी बचाओ आंदोलन के संस्थापक बनवारी लाल शर्मा विश्वविद्यालय परिसर पहुंचेंगे। इसके बाद मैग्सेसे पुरस्कार विजेता और सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय व प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से कार्यकर्ता व बुद्धिजीवी इलाहाबाद पहुंचने वाले हैं। इसकी शुरूआत पत्रकारिता विभाग के समानांतर स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रम शुरू करने को लेकर हुई जिसे अब विश्वविद्यालय के ज्यादातर छात्रों का समर्थन मिलने लगा है। आज दोपहर करीब सौ छात्र तेज बारिश में अपने शिक्षक सुनील उमराव के नेतृत्व में सड़क पर उतरे और शिक्षा की निजी दुकान बंद करो के नारे लगाते हुए और कई विभाग तक पहुंचे। सभी छात्र हाथों पर काली पट्टी बांधे और पोस्टर बैनर लिए हुए थे। ये छात्र पत्रकारिता विभाग, राजनीति शास्त्र विभाग, प्राचीन इतिहास विभाग और हिन्दी विभाग, दर्शन शास्त्र विभाग आदि होते हुए वापस अपने विभाग पहुंचे। इस दौरान बारिश में भीगते हुए छात्र-छात्राओं ने नारे लगाए और छात्रों के बीच पर्चे बांटे। चार सितम्बर से सौ से ज्यादा छात्र इस मुद्दे को लेकर विश्वविद्यालय परिसर में जन समर्थन जुटाने में जुटे हुए हैं। इसके लिए वे गांधीगिरी का भी सहारा ले रहे हैं। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे शिक्षक सुनील उमराव को कला संकाय के डीन एनआर फारूकी ने शिक्षक दिवस के दिन ही नोटिस जरी की थी। छात्रों ने फारूकी का घेराव कर उन्हें फूल भेंट किए और आंदोलन तेज करने के लिए आशीर्वाद मांगा।पत्रकारिता विभाग के शिक्षक सुनील उमराव ने समूचे आंदोलन की मोटी जनकारी देते हुए बताया-एक तरफ सालों से खट रहा पत्रकारिता और जनसंचार विभाग है जिसमें छात्रों के बैठने के लिए ढंग की कुर्सियां तक नहीं हैं। ऐसे में पैसा देकर पत्रकार बनाने वाली डिग्री शुरू करना कहां तक उचित है? वहां पर एक छात्र की फीस एक लाख बीस हजर रूपए है जबकि हमारे यहां चौदह हजर रूपए। इस नए पाठ्यक्रम को विश्वविद्यालय प्रशासन प्रोत्साहित कर रहा है जबकि सालों से पत्रकारिता पढ़ाने वाले विभाग की उपेक्षा की ज रही है। एक ही विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के दो तरह के छात्र तैयार किए ज रहे हैं। एक में धनाड्य वर्ग के लोग आ रहे हैं तो दूसरी तरफ गरीब और मध्यम वर्ग के छात्र जरूरी सुविधाओं के बिना पढ़ाई कर रहे हैं।


विश्वविद्यालय के छात्रों ने इस मुद्दे को लेकर कुलपति, डीन कला संकाय, डीन स्टूडेंट वेलफेयर और अध्यक्ष पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग को जो ज्ञापन दिया है, उसमें कई मुद्दे उठाए गए हैं। ज्ञापन में कहा गया है कि यूजीसी के नियमों को ताक पर रखकर विश्वविद्यालय प्रशासन ने पिछले २५ वर्षो से चल रहे पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के होते हुए भी -मीडिया अध्ययन केन्द्र- के रूप में नए व्यावसायिक संस्थान की स्थापना की है। इसमें कई और सर्टिफिकेट और डिप्लोमा शुरू किए ज रहे हैं। छात्रों ने पूछा है कि एक ही विश्वविद्यालय में किसी विभाग के समानांतर दूसरा पाठ्यक्रम चलाने का औचित्य क्या है। खासकर तब जब दोनों का पाठ्यक्रम यूजीसी के तय पाठ्यक्रम के समान हो। दूसरे इसको अभी तक विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी से मंजूरी तक नहीं मिली।विश्वविद्यालय के छात्र धर्मेन्द्र सिंह ने कहा-यह सारा मामला चंद लोगों के निजी फायदा पहुंचाने के लिए शुरू किया गया है। इसमें विश्वविद्यालय प्रशासन के शीर्ष पर बैठे लोग शामिल हैं। यही वजह है कि बिना किसी अर्हता के सेंटर फार फोटो जर्नलिज्म एंड विजुअल कम्युनिकेशन के प्रभारी के प्रस्ताव को विद्वत परिषद ने आंख मूंदकर मुहर लगा दी। कुल मिलाकर यह प्रस्ताव दोहरी शिक्षा प्रणाली का प्रतीक है जिसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र स्वीकार नहीं करेंगे और आंदोलन बढ़ाया जएगा। आंदोलन में शामिल पूर्वोतर के छात्र लोडाम गंगो ने कहा-अभी तक हम लोग देश के उत्तर पूर्वी हिस्से से आकर यहां सस्ती शिक्षा पा लेते थे। लेकिन अब इसी पाठ्यक्रम को महंगा कर जो समानांतर व्यवस्था शुरू की गई है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में पत्रकारिता का मौजूदा विभाग समाप्त कर लाखों रूपए फीस पर लोगों को पत्रकारिता की शिक्षा दी जएगी। यह एक बड़ा खतरा है।


इस आंदोलन को लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र अब समाज के विभिन्न वर्गो के साथ अन्य क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों से संपर्क शुरू कर चुके हैं। लखनऊ, दिल्ली के साथ-साथ देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे पत्रकारिता संस्थानों में इस मुद्दे को लेकर बहस शुरू करने की दिशा में पहल की ज रही है। फिलहाल इलाहाबाद में अरसे बाद छात्रों का यह आंदोलन बढ़ता नजर आ रहा है।

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