राकेश कुमार

इंस्टीट्यूट आॅफ प्रोफेशनल स्टडीज सेंटर (आईपीएस इविवि) में हो रहे गोरखधन्धे का सच आखिरकार सामने आ ही गया। दरअसल इसका खुलासा तो एक न एक दिन होना ही था। कैम्पस सेलेक्शन कराने का लालीपॅाप दिखाकर धनउगाही का यह नायाब तरीका अधिक दिनों तक तो नही चल सकता था। ज्ञातब्य है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सेल्फ फाइनेंस कोर्साें की शतरंजी बिसात को नियंत्रित करने वाले प्रो0 जीके राय ऐसे धनपिपासु सज्जन हैं, जो अपनी जेब भरने के लिए पिछले कुछ सालों में विश्वविद्यालय के कई विभागों को गर्त में धकेल उसके समानान्तर सेल्फ फाइनेंस कोर्स चला रहे हैं। उनका यह सिलसिला अभी भी जारी है, जिसका नया शिकार 25 वर्षाें से चल रहा पत्रकारिता विभाग होने जा रहा था। फिलहाल उनके नापाक मंसूबों के विरोध में ज्वाला उठ खड़ी हुई है। विरोध कि जो ज्वाला पत्रकारिता विभाग से उठी थी, उसकी चिंगारी अब आईपीएस संेटर में भी पहुंच गयी है।
आईपीएस सेंटर में वर्षों से धधक रहे ज्वालामुखी का उद्गार तो होना ही था। छात्रों ने निदेशक के खिलाफ मोर्चा तब खोला जब वे अपने को वहां ठगा महसूस करने लगे। ई- लर्निंग प्रोग्राम के तहत शुरु किए गये सर्टीफिकेट कोर्स में प्रवेश के दौरान ही छात्रों को प्लेसमेंट दिलाने का लालीपाॅप भी गिट देने का वादा संस्थान ने किया था। उसी लालीपाॅप के झांसे में आकर छात्रों ने प्रवेश भी ले लिया। छात्रों का कहना है कि प्रवेश के पहले उनसे कहा गया था कि कोर्स पूरा होने तक आईसीआईसीआई में सभी को नौकरी दिला दी जायेगी लेकिन संस्थान की तरफ से अभी तक ऐसी कोई पहल नहीं की गयी। छात्रों का यह भी आरोप है कि आईसीआईसीआई से आज तक एक भी अधिकारी सेंटर में नहीं आया। कोर्स समाप्त होने पर छात्रों को नौकरी का लालीपाॅप दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आया। इन सभी बातों को लेकर छात्र नाराज तो थे ही। इसी बीच छात्रों का फाइनल रिजल्ट भी आ गया जिसमें दर्जनों छात्र फेल कर दिये गये, जिसके पीछे तर्क यह दिया गया है कि वे छात्र क्लास ऐक्टीविटी में शामिल नहीं थे। छात्र उक्त समस्याओ को लेकर निदेशक से बात करना चाहते थे लेकिन निदेशक उनके बीच बात करने के लिए नही आये। इससे आक्रोशित छात्रों ने प्राचीन इतिहास विभाग पहुंच कर निदेशक प्रो जीके राय को घंटों घेरे रखा। इसके बाद निदेशक महोदय छात्रों की उक्त समस्या पर बातचीत करने के लिए तैयार हुए। निदेशक का घेराव करने आये छात्रों ने बताया कि जो कोर्स 6 महीने में पूरा होना था वह 9 महीने तक चला। जिसमें केवल तीन महीने तक ही क्लासें चली हैं। जिसका खामियाजा दर्जन भर छात्रों को फेल होकर भुगतना पड़ा। आईपीएस संेटर के ई- लर्निंग प्रोग्राम के तहत सेंटर में पिछले साल काफी मशक्कत के बाद आईसीआईसीआई के साथ मिलकर छः महीने का एक सर्टीफिकेट कोर्स शुरू किया गया था। जिसकी फीस प्रति छात्र लगभग 12 हजार रुपये है।
सेंटर में उठी विरोध की यह ज्वाला रूकने का नाम नहीं ले रही है। पहले तो ई- लर्निंग के छात्रों ने इसका विरोध किया और उसके बाद दूसरे दिन बीसीए के छात्रों ने भी सेंटर में प्रोफेशनल कोर्स के नाम पर हो रहे गोरखधन्धे का चिठ्ठा खोल दिया। यह चिठ्ठा तब खुला जब वहां पढ़ने वाले छात्रों को अपना भविष्य अंधकार की तरफ उन्मुख होता दिखा। बीसीए प्रथम वर्ष सत्र 2007-08 में कुल 55 छात्रों ने प्रवेश लिया था जिसमें 16 छात्र पहले ही वर्ष फेल कर दिये गये। बचे 39 छात्रों में से दूसरे वर्ष में 15 और को फेल कर दिया गया। ताज्जुब की बात तो यह है कि छात्रों का रिजल्ट घोषित किये बिना ही अगले वर्ष की फीस जमा करा ली जाती है। इस वर्ष भी यही किया गया। इसके बाद जब फेल हुए छात्रों को इस सत्र की दोनों सेमेस्टर की परीक्षाएं फिर से देने को कहा गया तो छात्र सकते में आ गये। अपने कैरियर को संकट में देख कर छात्र सड़क पर उतर आये और विश्वविद्यालय में घूम-घूम कर सेंटर में हो रहे गोरखधंधे का प्रचार करने लगे और इसी कड़ी में छात्रों ने इस मामले को लेकर डीएसडब्ल्यू प्रो आरके सिंह और कुलानुशासक प्रो जटा शंकर को ज्ञापन भी दिया। छात्रों ने मांग की कि उनके हित में कोई सकारात्मक कदम उठाया जाय नहीं तो उनकी फीस वापस करायी जाय। इस त्रिवर्षीय बीसीए पाठ्यक्रम के लिए प्रतिवर्ष 30 हजार रूपये फीस भी ली जाती है।

संेटर के लिए यह कोई नई बात नही है इससे पहले सेंटर में चलने वाले डिप्लोमा ‘इनफार्मेशन टेक्नोलाॅजी’ के छात्रों को भी इसका शिकार होना पड़ा था। इस एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स में सत्र 2008-09 के लिए कुल 34 छात्रों को प्रवेश दिया गया था। परीक्षा में केवल 3 छात्र पास हुए जबकि बाकी सभी को फेल कर दिया गया। उस दौरान जब उन छात्रों से मुलाकात हुई थी तो उन सबने बताया था कि यहां पर पर्याप्त मात्रा में योग्य टीचर नहीं हैं, पढ़ने के लिए लाइब्रेरी नहीं है और न ही उपयुक्त कम्प्यूटर लैब है। यहां तक कि पूरे कोर्स में सिर्फ आधी अधूरी कक्षाएं चली हैं। उन फेलियर छात्रों से भी दुबारा परीक्षा देने को कहा गया था। जिसके लिए वे तीन महीने तक भटकते रहे। दुबारा परीक्षा के लिए छात्रों को अतिरिक्त शुल्क् भी देना पड़ा। इस कोर्स के लिए भी कुल मिलाकर लगभग 14,000 हजार रूपये फीस ली जाती है। इन सभी बातों से साफ हो जाता कि आईपीएस को एक शिक्षण संस्थांन बताने की अपेछा इसे धनउगाही का अड्डा कहना ज्यादा उचित होगा। यहां पर छात्रों के सपनों को इस तरह तोड़ा जाता जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।
गौरतलब है कि विश्वविद्यालय में ई- लर्निंग प्रोग्राम शुरु करने वाले कुलपति अपने आप को बड़ा गौरवान्वित महसूस करते थे। यहां तक कि वे सभा-सेमिनारों में भी इस बात का ढिढोंरा पीटन से नहीं थकते थे कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय ई- लर्निंग प्रोग्राम शुरु करने वाला भारत का पहला विश्वविद्यालय है। लेकिन अफसोस कि जिस ई- लर्निंग प्रोग्राम पर जनाब को इतना गुमान था, वह गुमान इस कदर औंधे मुंह धराशायी हुआ कि उसकी पहली ही सीढ़ी पर सवाल उठने लगे।
यहां यह भी बताना महत्वपूर्ण होगा कि इस तरह के तमाम प्रोफेशनल कोर्स जिस इंस्टीट्यूट आॅफ प्रोफेशनल स्टडीज (आईपीएस) के तहत संचालित किये जाते हैं, उसके निदेशक प्रो जी के राय ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी धनउगाही नीतियों के चलते कई विभाग मिटने के कगार पर आ गये हैं और वे अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में प्रो राय ने कई विभागों के समानान्तर सेल्फ फाइनेंस कोर्स शुरु किया है, जिसमे कुलपति प्रो आरजी हर्षे की भी एक अहम भूमिका रही है। गांधी के आदर्शों पर चलने की बात करने वाले कुलपति की इसके पीछे मनःइच्छा क्या है, यह भी चिंतन करनेे का विषय है। गांधीवाद और पूंजीवाद सिद्धांतो को साथ-साथ लेकर चलने वाले कुलपति स,े निवेदन ही सही, कहना चाहता हूं कि कम से कम गांधी के विचारों की कद्र नहीं कर सकते तो छोड़ दीजिए लेकिन ऐसा करके उनके विचारों को कलंकित न करें।
राकेश इलाहबाद विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के छात्र है.
मेरी काली रेखाओं को पसंद करने के लिए धन्यवाद
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