इलाहाबाद 7 अक्टूबर 09 विश्वविद्यालय में कुछ विभागों के समानान्तर खोले जा रहे सेल्फ फाइनेंस कोर्सोें के विरोध में पत्रकारिता विभाग के छात्रों की तरफ से शुरु किया गया सत्याग्रह आज भी जारी रहा। आज 40वें दिन छात्रों ने अपनी कक्षाएं करने के बाद शाम 3 बजे परिसर में जुलूस निकाला। कुलपति ने शनिवार को विभाग का दौरा किया और इस दौरान अपने संबोधन में जो बाते विद्यार्थियों को कही उनसे पूर्णतः न सहमत होने के कारण छात्रों ने अपना रचनात्मक सत्याग्रह जारी रखने का संकल्प लिया है।
जहां एक तरफ कुलपति द्वारा विभाग को मूलभूत संसाधनों और सुविधाओं को मुहैया कराने के आश्वासन का सभी छात्रों ने स्वागत किया वहीं कुुलपति द्वारा बीए इन मीडिया स्टडीज को प्रोफेशनल और एमए मास कम्युनिकेशन को ऐकेडमिक कहने पर छात्रों ने पूरी तरह असहमति जताई। क्योंकि हमारे विभाग से भी प्त्रकारिता के प्रोफेशनल निकलते हैं और ‘‘जीडी गोयनका’’ जैसे पत्रकारिता के बडे़ पुरस्कारों को भी पाते हैं। हमे अपने काम के सर्टीफिकेट कम से कम से उन लोगों से लेने की कोई जरुरत नहीं है जो न तो कभी हमारे विभाग में आये हों और न ही हमारे काम से परिचित हों। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा आश्वासनों के ठोस रूप लेने तक विभाग के सभी छात्र सत्याग्रह को सकारात्मक रूप देते हुुए चलाए रहने के पक्ष में हैं। इसे विभाग के लोग इसलिए जरूरी समझते है क्योंकि पिछले 40 दिनों के आंदोलन के प्रति प्रशासन का जो रवैया रहा है उससे छात्रों को प्रशासन केे प्रति किसी प्रकार का विश्वास करने का कोई कारण नहीं दिखता।
छात्रों का कहना था कि पिछले 4 सालों में विश्वविद्यालय प्रशासन की कथनी और करनी में बहुत विरोधाभास होने के कारण हम अपने खून-पसीने से खड़े किये गये सत्याग्रह को चंद आश्वासनों के नाम पर खत्म नहीं कर सकते, जब तक कि हमारे द्वारा उठाये गये मुद्दो पर कोई समारात्मक पहल करते हुए उसे यथार्थ रुप में कार्यान्वित नहीं किया जाता। क्योंकि एमए मास कम्युनिकेशन के पहले सत्र में 30 सीटों के लिए 2007 में 1 हजार से अधिक परीक्षार्थी प्रवेश परीक्षा में बैठे थे जो उस दौरान हुई पीजीएटी की प्रवेश परीक्षा में औसतन प्रति सीट सबसे अधिक थे। ये एक विडम्बना ही है कि आज उसी विभाग को नजंरदाज करके उसके समानान्तर एक महीने के व्यापक प्रचार और विश्वविद्यालय के पूरे लाव लश्कर की कोशिशों के बाद भी जो नया कोर्स बीए इन मीडिया स्टडीज शुरु किया गया उसमे 30 सीटों के लिए महज 60 फार्म ही बिक सके, जो हमारी सैद्धांतिक जीत है। विश्वविद्यालय के इतिहास में यह पहला मौका है जब कोई नया कोर्स बिना कार्यकारिणी परिषद से पास हुए कुलपति के विशेष अनुकम्पा से शुरु किया गया। यह और भी हास्यास्पद स्थिति है कि किसी कोर्स के फार्म को बेचने का श्रीगणेश कुलपति ने खुद किया और इसी दौरान उसकी बिल्डिंग का भी शिलान्यास किया। ताज्जुब ये है कि इन तमाम उपायों के बाद भी अभ्यर्थियों की संख्या सैकडे़ के आकड़े को भी पार कर नहीं कर सकी। इसके बाद भी उस पाठ्यक्रम की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर न सोचना उनकी वैचारिक हठता है न कि हमारे सत्याग्रह की कमजोरी।
- समस्त छात्र
पत्रकारिता विभाग
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
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