हिन्दी पत्रकारिता के पितामह और पत्रकारिता के पेशेगत आदर्शाें को एक नई ऊंचाई देने वाले प्रभाष जोशी अब हमारे बीच नहीं रहे। एक बारगी सुनकर यकीन नहीं हुआ कि जन अधिकारों और प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाला पुरोधा अचानक हमे छोड़ गया। पिछले 30 सितम्बर को ही वो हमारे बीच हमारे विभाग में थे- हमारे आंदोलन के हमराह के रुप में। विश्वविद्यालय के कोने में उपेक्षित पड़े हमारे छोटे से विभाग द्वारा विश्वविद्यालय प्रशासन की गलत नीतियों और शिक्षा के निजीकरण के विरोध में जब अपने आंदोलन की शुरुआत की गयी तो हमारे इस संघर्ष में सबसे पहले आने वालों में एक नाम प्रभाष जोशी का भी था। हम लोगों में कोई भी ऐसा नहीं था, जिसे वे पहले से जानते रहे हों, लेकिन जब हमने उन्हें अपने आंदोलन के बारे बताया और उनसे साथ आने का आग्रह किया तो उन्होंने अपनी सेहत और स्वास्थ्य की बिल्कुल परवाह न करते हुए हमारे समर्थन में इलाहाबाद आना सहर्ष स्वीकार कर लिया और इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उन्हें आने से रोकने की सारी कोशिशों के बावजूद वे यहां आये। हमारे मंच से बोलते हुए वे कई बार भावुक हुए और कई बार अपनी मृत्यु को भी याद किया। यहां तक कि हमारे विभाग के आंदोलन के लिए उन्होंने अपना सर तक कटाने की बात कही।
प्रभाष जी का पूरा जीवन हमारे जैसी युवा पीढ़ी के लिए आदर्श और प्रेरणा स्रोत रहेगा, विशेष कर हमारे विभाग के लिए क्योंकि हमारे विभाग में आकर उन्होंने हमारे संघर्ष को एक नई धार दी। प्रभाष जोशी का जाना हिन्दी पत्रकारिता के एक ऐसे मूर्धन्य सितारे का जाना है, जिसकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ने वाली। उनके जाने से पत्रकारिता जगत में जो शून्य पैदा हुआ है उसकी पूर्ति आने वाले लम्बे समय तक सम्भव नहीं दिखती। इस दुख की घड़ी मे हम उनके परिवार के प्रति अपनी पूरी संवेदना और सहानुभूति व्यक्त करते हैं और ईश्वर से कामना करते हैं कि उनके परिवार को इस दुख को सहने की शक्ति प्रदान करे। जाते समय विभाग के छात्रों से भावुक होकर उन्होंने कहा था कि तुम लोगों ने जो लड़ाई शुरु की है, इससे कभी पीछे मत हटना और इस आंदोलन में हर कदम पर मैं तुम्हारे साथ हूं। उन्होंने यहां तक कहा कि इस संघर्ष में अगर कभी सर कटाने की भी नौबत आयी तो उसमें पहला सर प्रभाष जोशी का होगा। इसके बाद हम सभी ने उन्हें विश्वास दिलाया कि हम किसी भी हालत में अपने कदम पीछे नहीं लेंगे। आज हमारे आंदोलन का 65वां दिन है और हमारा विरोध लगातार जारी है। पत्रकारिता के सरोकारों को जिन्दा रखने के लिए हम आज भी सड़को पर हैं और इस बात के लिए दृढ़ संकल्पित भी, कि हम आजीवन पत्रकारिता के आदर्शाें को बचाने के लिए लड़ेंगे और अगर जरुरत पड़ी तो मरेंगे भी। शायद यही हमारी तरफ से पत्रकारिता जगत के इस भीष्मपितामह को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
नाम आँखों के साथ
समस्त छात्र
पत्रकारिता विभाग
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
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